युवा फोटोग्राफर ने प्राचीन हम्पी के अनोखे दृश्यों को दिल्ली लाकर चकित किया

युवा फोटोग्राफर ने प्राचीन हम्पी के अनोखे दृश्यों को दिल्ली लाकर चकित किया
New Delhi / September 18, 2022

नई दिल्ली, 18 सितंबर: डूबते सूरज ने जब हम्पी के ऐतिहासिक खंडहरों में नारंगी रंग के "जादुई" वर्ण बिखेरे तो यात्रा करने के शौकीन फोटोग्राफर के अंदर इन दृश्यों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की एक तीव्र इच्छा जाग्रत हुई। अपने घर लौटते ही, दिल्ली में रहने वाले मनोज अरोड़ा ने कला विद्वान उमा नायर को अपनी द्वारा खींची असंख्य फोटो दिखाईं। और फिर इसका नतीजा सामने आया राष्ट्रीय राजधानी में चल रही प्रदर्शनी के रूप में।

 

अगर 'रिडिस्कवर हम्पी' को सार्वजनिक गैलरी में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में ढाई साल लगे, तो उसकी वजह थी लंबे समय तक चलने वाली कोविड-19 महामारी। लेकिन देखा जाए तो इस महामारी ने मध्यकालीन युग के विजयनगर राज्य के विविध मनमोहक चित्रों की प्रदर्शनी के द्वारा एक अद्वितीय समकालीनता प्रदान की है। यह प्रदर्शनी बीकानेर हाउस में 22 सितंबर तक चलेगी।

 

एक दशक से पेशेवर फोटोग्राफर के रूप में काम कर रहे 30 वर्षीय अरोड़ा पूर्व-मध्य कर्नाटक में 14वीं शताब्दी की पत्थर की मूर्तियों की यात्रा के बारे में बताते हुए कहते हैं, “मैं काफी समय से हम्पी जाने की योजना बना रहा था। जब अंततः वहां जाना 2020 के वसंत में हुआ, तो दुनिया कोरोनो वायरस के प्रसार के शुरुआती दौर में थी। 16 वर्ग मील में फैले अवशेष मुझे तब और अधिक निर्जन और उदास लगे। उन्हें देख मेरे अंदर आध्यात्मिक मनोभावों को जैसे किसी ने जगाया। मैं लगभग एक पंद्रह दिनों तक वहां रहा।”

 

अनुभवी कला मर्मज्ञ नायर के अनुसार, परिणाम "समान रूप से प्रभावशाली" थे। उमा जिन्होंने 13 सितंबर को शुरू हुई प्रदर्शनी को क्यूरेट किया है। कला-प्रेमियों की उपस्थिति में फैशन की दुनिया के जाने-माने नाम सुनील सेठी ने इसका उद्घाटन किया। उमा कहती हैं, “दरअसल, अरोड़ा से मेरी मुलाकात मार्च 2020 में दिल्ली में आयोजित एक ग्रुप आर्ट शो में हुई थी। वहां उनकी छह फोटो प्रदर्शित थीं। वह मुझे सबसे अलग और श्रेष्ठ लगीं।”

 

उस मुलाकात के कुछ समय बाद, अरोड़ा ने नायर को 600 तस्वीरें दिखाईं, जो उन्होंने अपने हाल की हम्पी यात्रा के दौरान खींची थीं। "पहली ही नजर में मुझे उनकी असाधारणता और विशिष्टता समझ आ गई। जल्दी ही हमने तय किया कि इन फोटो की एक प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए,” वह कहती हैं।

नायर कहती हैं, “चयन करना श्रमसाध्य था। "बहुत चुनौतीपूर्ण भी, लेकिन सुखद। मुझे सबसे अच्छी और उपयुक्त फोटो को छांटने में लगभग छह महीने लगे। कुल 60 फोटो चुनी गईं।”  उन फोटो को किस तरह वर्गीकृत किया, इसके बार में वह कहती हैं कि हॉल के प्रवेश द्वार पर प्रसिद्ध हाथी 'लक्ष्मी' की फोटो को प्रदर्शित करने से हमने शुरुआत की, उसके बाद 'देवताओं और देवियों', 'भित्ती चित्रों', 'वास्तुकला' से संबंधित फोटो प्रदर्शित की गई हैं। 'मनुष्य और प्रकृति' के साथ समापन से पहले संध्या के प्रकाश को दर्शाती 'बलुआ पत्थर पर संध्या' की फोटो लगाई गई हैं।

 

फोटो प्रदर्शित करने की प्रक्रिया अरोड़ा की सुंदरता को समझने की भावना को अच्छी तरह व्यक्त करती है। जैसा कि नायर कहती हैं, "एक इतिहासकार के तर्क और एक कलाकार के सौंदर्यशास्त्र" के आदर्श मिश्रण से तालमेल विकसित हुआ लगता है। मैं कहूंगी, बहुत समय पहले, सपने पत्थर से बने थे। इसे हम्पी कहते हैं।" अरोड़ा कहते हैं, “शाम के समय मैं विशेष रूप से उत्साहित हो जाता था, क्योंकि सूर्यास्त के समय जगह का रंग और बनावट नाटकीय रूप से बदल जाता था।”

इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि यह प्रदर्शनी हम्पी की एक बड़ी तस्वीर पर प्रकाश डालती है, यहां तक ​​​​कि इसके चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त की गई और स्थापत्य कारीगरी के बारीक पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है। अरोड़ा की निगाहें उन अजीबोगरीब पेड़ों को देखने से भी नहीं चूकीं जो समग्र रूप से स्थान के आकर्षण को बढ़ाते हैं। “उदाहरण के लिए, विट्ठल मंदिर में कई हॉल और मंडप हैं। लेकिन इसमें एक आश्चर्यजनक रूप से सूखा हुआ पेड़ भी है, जो प्रसिद्ध पत्थर के रथ के कोने के पास सीधा खड़ा है। यदि मंदिर 15वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया है, तो पेड़ 150 साल पुराना होगा। और यह इसकी भव्यता से मेल खाता है...और इसकी मुर्झाई हुई शाखाओं को संध्या का प्रकाश चूमता हुआ प्रतीत होता है।”

अरोड़ा के अनुसार, हम्पी के बारे में हर चीज देश की भव्य विरासत की समृद्धि को दर्शाती है। तुंगभद्रा नदी के किनारे यूनेस्को-मान्यता प्राप्त स्थल का जिक्र करते हुए वह कहते हैं, "वहां रहते हुए हर दिन मुझे कुछ नया जानने का अहसास हुआ, मेरे अनुभव में लगातार बढ़ोतरी होती रही।"

माशा आर्ट के सीईओ समर्थ माथुर ने कहा कि देश की विरासत जितनी समृद्ध है उतनी ही विविधतापूर्ण भी है। 'डिस्कवर हम्पी' युवाओं के बीच भारत की विरासत के प्रति गर्व करने की एक नई आशा उत्पन्न करने में सक्षम है।

 

जहां तक ​​इसके आधी सहस्राब्दी पुराने भित्ति चित्रों की बात है, नायर कहती हैं कि वे लोककथाओं, प्राचीन भारतीय ग्रंथों और महाकाव्यों और कन्नड़ साहित्य से प्रेरित हैं। अरोड़ा कहते हैं, “समय बीतने के साथ, पेंटिंग धुंधली पड़ गई हैं। मैं चाहता था कि मेरा कैमरा इतिहास के इस रूप को कैद करे।"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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